बलिया। भारतीय राजनीति में शायद ही कोई ऐसी हस्ती हो जिसने कभी किसी सरकार में मंत्री पद प्राप्त करने की कोशिश न की हो लेकिन बलिया के माटी के लाल श्री चंद्रशेखर दोने अपने राजनीतिक सफर की लंबी पाली में कभी भी मंत्री पद की लोलुपता में संलिप्त नहीं पाए गए, जबकि उनकी सलाह पर अनगिनत राजनीतिक हस्तियों को मंत्री पद की सौगात विभिन्न सरकारों में मिलती रही। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के इतिहास में यदि झांका जाए तो हर जगह मंत्री, प्रधानमंत्री ,राष्ट्रपति और राज्यपाल तक बनने की होड़ में बड़े-बड़े धुरंधर नेता राजनैतिक परिक्रमा करते नजर आते हैं। लेकिन चन्द्र शेखर ने आखिर 1942 से लेकर 2007 तक की राजनीतिक पाली में उन्होंने कभी पद लोलुपता में संलिप्त नहीं पाए गए स्वयं स्वर्गीय राजीव गांधी के के द्वारा उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए आफर दिया गया,और उन्होंने अल्पमत होने के बाद भी लगभग 8 महीने के कार्यकाल में उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। जहां तक सिद्धांतों की बात होती है तो बड़े मंत्री पद के ऑफर के बावजूद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की सरकार का अकेले उन्होंने विरोध किया। खुद भी जमीनी नेता होने के बावजूद आम लोगों के दुख दर्द से परिचित होने के कारण उन्होंने उनके दर्द की समझा और स्वयं महसूस करते हुए हर जगह एक सच्चे समाजवादी की तरह खड़े नजर आए। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक इतिहास में स्वर्गीय चंद्रशेखर को जो मुकाम हासिल था वह मुकाम आज तक खाली पड़ा हुआ है ।क्योंकि उस स्तर का कोई भी राजनेता अब तक उनकी राजनैतिक योग्यता के बराबर का पैदा नहीं हो सका। वर्तमान परिवेश में हर तरफ आज युवा तुर्क चंद्रशेखर की कमी सड़क से सदन तक शिद्दत से महसूस की जा रही है। समाज के उत्थान और विकास के साथ ही देश को आर्थिक आजादी दिलाने का वे आजीवन प्रयास करते रहे। जिला अस्पताल के नवीन भवन के उद्घाटन के अवसर पर पहुंचने के बाद अस्पताल में व्याप्त गंदगी पर विचरते हुए उन्होंने कहा कि यहां के लोगों को सुविधा चाहिए लेकिन उसके मेंटिनेंस पर कोई ध्यान देने की जिम्मेदारी भी हम ही ले ,बड़ी लाइन और एक्सप्रेस ट्रेनें चाहिए लेकिन बेटिकट चलेंगे लोग आदत नहीं सुधारेगें
और जन प्रतिनिधियों की शिकायत जरूर करेंगे। यहां एक घटना का उल्लेख करना अनुचित न होगा कि उनके प्रधानमंत्री पद के कार्यकाल के दौरान जिले के विकास के लिए टेलीफोन की मण्डलीय कार्यालय की स्थापना किये जाने के सम्बन्ध में तत्कालीन विभागीय बड़े बाबू स्व० विजय कुमार मिश्र और टेलीफोन विभाग के तीन चार कर्मचारियों ने मुझसे मिलकर बलिया में टीडीएम आफिस कराने के लिए हमें अपना प्रस्ताव दिया,जिसे मेरे द्वारा चन्द्र शेखर जी के पास पहुंचाया गया, प्रस्ताव को हाथों में लेने के साथ ही तत्कालीन केन्द्रीय संचार मंत्री
कुंवर संजय सिंह को चन्द्र शेखर जी फोन मिलाकर इस सम्बन्ध में तत्काल कार्यवाही करने का निर्देश दिया। लेकिन विभागीय अधिकारी इस तकनीकी बिन्दु को लेकर परेशान थे कि पूरे देश में कम से कम चार जनपदों को लेकर ही मण्डलीय कार्यालय बनाया जा सकता है। लेकिन चंद्रशेखर जी के प्रयास से बलिया और गाजीपुर को एक साथ करके मंडलीय ईडीएम कार्यालय की स्थापना की घोषणा कर दी गई जिसका संचार मंत्री ने स्वयं बलिया कर शुभारंभ किया था। एक विशेषता यह भी रहीं कि उनके पास आने वाली पीड़ित और स्वार्थी लोगों को नजदीक से पढ़ लिया करते थे। ऐसे अनगिनत उदाहरण श्री चंद्रशेखर के साथ आज भी स्मृति शेष बनकर रह गए हैं आज वह हमारे बीच नहीं हैं तो पूरा जनपद अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहा है। हर तरफ उनकी कमी लोगों के बीच शिद्दत से महसूस की जा रही है उनके परिनिर्वाण दिवस पर उनके पुत्र राज्य सभा सांसद नीरज शेखर और उनकी पत्नी डा० सुषमा शेखर राजघाट के समीप एकता स्थल पर पहली बार समाज वादी लोगों की अनुपस्थिति में श्रद्धा सुमन अर्पित कर अपने पिता को श्रद्धांजलि दी। बीकेडी टीवी परिवार उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए नमन करता है।
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