.... कोई तो बताए अब कैसे जिंदा रहेगे हम और हमारा कुनबा

बलिया। कोरोना संक्रमण के चलते प्रदेश सरकार के फरमान पर सूबे में सुबह से शाम तक लाकडाउन चल रहा है। आलम यह है कि कुछ दुकानों को छोड कर  अधिकांश दुकानें  बंद रखी जा रही है। आलम यह है कि बहुत से दुकानदारों के रोजी—रोटी की कमाई पर भी ग्रहण लग गया है। दुकानदारी न चलने के बाद यही लोग तरह—तरह के हथकंडे अपना रहे हैं कोई मास्क बेच रहा  तो कोई खाने—पीने का सामान। ऐसे में आपदा में अवसर तलाश रहे लोगों भी येनकेन प्रकारेण लोगों को उत्पीडित करने से बाज नहीं आ रहे है। कुछ लोगों के यहां परिवार चलाने के लिए भी लाले पड़ गये हैं। ऐसे लोग सरकार से यही पूछ रहे हैं कि साहब आप भी बताएं कि अब  अपने परिवार कहां से और कैसे चलाएं!
कोरोना महामारी का संक्रमण बढने के मुदृे पर सरकार ने पूरे प्रदेश में ३१ मई तक लाकडाउन का फरमान तो जारी कर दिया है। लेकिन प्रदेश सरकार के इस अदूरदर्शी निर्णय से आमजन का फिलहाल बुरा हाल है। आलम यह है कि बडे़—बडे़ आढ़त वाले तो खाने—पीने के सामानों का मूल्य बढ़कर अपने घाटे को फायदे का सौदा बनाने से बाज नहीं आ रहे हैं । लेकिन खाने—पीने का सामान बेचकर रोज अपने परिवार की जीविका चलाने वालों के समानों विकट स्थिति पैदा हो गयी है। लाकडाउन के चलते जहां अधिकांश लोगों की रोजी—रोजगार चौपट हो गया है। वहीं करीब 50 फीसदी लोग भूखमरी के चलते अपने परिवार के लिए दवा और दो जून की रोटी की व्यवस्था करने के लिए दूसरों के आगे हाथ तक फैलाने अपने आपको विवश पा रहे है। ऐसे में चलता कारोबार छोड़ लोग सडक के किनारे मास्क आदि बेचकर परिवार और बच्चों किसी तरह भरण-पोषण की व्यवस्था में लगे हुए है। शनिवार की देर शाम चित्तू पांडे चौराहा स्थित पालिका बाजार में मैं स्वयं गया हुआ था इसी बीच एक सात, 8 साल के बच्चे ने मेरी ओर पांच नींबू बढ़ाते हुए कहा कि भैया इसको खरीद ले मासूम के हाथ में वह पांच नींबू भी नहीं आ रहे थे 3एक हाथ में थे और तीन उसकी कमीज की जेब में थे उसने बड़े ही मासूमियत के साथ कहा की ₹10 में सारे निबू दे दूंगा क्योंकि मेरी बहन भूखी है उसके लिए कुछ ले जाना है ना चाहते हुए भी मैंने उसके नींबू खरीद लिए यही स्थिति आम मध्यमवर्गीय परिवारों और रोजमर्रा के मजदूरों के सामने इस समय चल रही है जिसको लेकर सरकार के सारे प्रयास फिलहाल विफल होते नजर आ रहे हैं दुर्ग व्यवस्था के लिए क्या उस मासूम को दोषी ठहराया जाएगा जो ₹5 और ₹10 में अपनी और अपने बहन का पेट पालने के लिए मजबूर देखा जा रहा है इसकी भी हमें चिंता करनी होगी। बाजार में खरीदारी करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना है कि जरूरतमंद से ही सामान खरीद दुकानों से खरीदारी से बचें शायद इनका ऐसा करने से कुछ भला हो सके।जबकि उन्हें भी इलाके की पुलिस पकड़कर जुर्माना के नाम पर डराकर धमका कर 10 से 15 हजार वसूलने के मौकै की तलाश में  लगी हुई है। ऐसे में पीडितों का यही  कहना हैं कि सरकार ,अगर अपने परिवार की रोटी मुहैया कराना यदि अपराध  है, तो यह अपराध हर बार करने के इलावा उनके पास कोई रास्ता भी नहीं है। सरकार ने ऐसी व्यवस्था की है कि कोई  उनसे रोटी की मांग न कर सके ।कई छोटे दुकानदार तो यही कह रहे हैं कि अगर सरकार की नजर में शराब की बिक्री लाकडाउन में जायज है, और खाने-पीने के सामानों पर   पाबंदी आखिर नाजायज कैसे हो गयी। उनका कहना है कि अब सरकार ही बताए कि हम अपने परिवार को कैसे जिंदा रखे। जबकि सामानों की कालाबाजारी से उनकी मांग भी बढ़ गयी है और उनके भाव भी दोगुना हो चुके हैं। स्कूल कालेज बंद है, फिर भी उनके बच्चों की फीस के लिए हर रोज स्कूल से फोन आखिर क्यों और कैसे आ रहा है। क्या आपदा में जीवन की कल्पना करना ही सबसे बड़ा गुनाह है।  

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