सम्पादकीय

सम्पादकीय

*बेंचू बेच देगा*
एक मां थी जिसके सौ करोड़ बेटे थे। मां ने अपने एक बेटे बेचू दास को घर संभालने की जिम्मेवारी सौंपी थी। वह रात-दिन काम कर रहा था कि घर का विकास हो। घर में आठ-दस भैंसे थीं, मुर्गियां थीं, खेत थे और एक तालाब था। बेटे ने आकर एक दिन मां को कहा-
*’’ मां, मैं सोच रहा हूं कि मुर्गिंयों को बेच दूं।’’*
-’’ क्यों ?’’
*" मुर्गियां जितने का दाना खा रही हैं उससे कम के अंडे दे रही हैं। इनको रखने से हमें नुकसान हो रहा है।’’लेकिन बेटा, उनके दाने की मात्रा बढ़ाकर हम और अंडे भी नहीं ले सकते क्या?’’बेटा झल्ला गया। उसने चिढ़कर कहा-
मां, मैने  भूल्लन बाबू से बात कर ली है। वे मुर्गियां ले जायेंगे और उसके बदले में हमें रोज अंडे दे दिया करेंगें।’’*मां चुप हो गई। बुढ़िया की कौन सुनता। उसने सोचा कि बाकी बेटे बोलेंगे लेकिन सब के सब चुप्पी साधे रहे । 
बेचू ने मुर्गियां बेंच दीं और दिन-रात मेहनत करने लगा, न खाने का ठिकाना न पहनने का। समय बीते वह एक दिन उत्साह से लबालब अपनी मां के पास आया- मां, मैं सोच रहा हूं कि तालाब बेच दूं।’’मां दुःखी होकर बोली।
-’’ क्यों ? ’’
बेटे ने कहा कि देखो, मछली का जीरा डालना, उनकी रक्षा करना कितना बेकार का काम है जबकि भूल्लन सेठ तालाब के बदले हमें मछलियां देने को तैयार है। बिना किसी झंझट के ही मछलियां मिल जाया करेंगी।’’ पुनः मां ने कहा कि लेकिन बेटा.................।’’
 बेचू नाराज हो गया। 
 मां, मैें जो कर रहा हूं सोच-समझकर ही कर रहा हूं।’’तालाब बिक गया। मछलियां आने लगीं। बेचू खुशी में झूमता रहता था। उसको पक्का यकीन हो गया था कि उसके पूर्वज मूर्ख थे जो मछलियों के लिए तालाब और अंडों के लिए मुर्गियां पाल  रखे  थे। वह अपनी अक्लमंदी पर इतराता रहता था। फोकट की मछलियां खाकर उसका गुण गाने वाले उसके यार-दोस्त उसकी खूब प्रशंसा करते।थोड़े समय के बाद वह मारे खुशी के झूमता हुआ आया-
*’’ मां, भैंसों का ग्राहक मिल गया।’’* मां गुस्से में कहा कि क्या अब भैंसे भी बेच देगा ?’’
अरे मां, तुम कितनी भोली हो। भैंस कितना चारा खाती है। साथ ही एक चरवाहा भी रखना पड़ता है। उसका खाना-कपड़ा अलग। बिना किसी तूल-बखेड़े के ही दूध देने को भूल्लन तैयार है।’’
मां जानती थी कि बोलने पर चिल्लायेगा तो चुप ही रही। उसने सोचा कि बाकी भाई बोलेंगे लेकिन सब अपने-अपने कपड़ों की चमक में खोये हुये थे। बेचू ने सबको अलग-अलग नाप के कपड़े बनवा दिये थे। सबको यह भरोसा दिला दिया था कि उसके कपड़े तो नाप के हैं दूसरों के नहीं। सब एक दूसरे का मजाक उड़ाने में व्यस्त थे। 
बेचू एक दिन खूब मगन होकर अपनी वीरता के गीत गा रहा था। मां ने पूछा -
-’’ अब क्या बेचकर आ गया ?’
*’’ मां बेचा नहीं, अनाज की नई व्यस्था कर दी। खेत भूल्लन संभालेगा। हमें अनाज दे दिया करेगा। खेत उसके अनाज हमारे। ’’*
मां ने सिर पीट लिया। वह चिल्लाती तो बेचू के दोस्त उसका मजाक उड़ाते थे। 
और एक दिन वह भी आया जब बेचू ने आकर मां को हंसते हुये कहा-
*’’ मां, सामान बांध लो हम शहर में रहने जा रहे हैं।’’
-’’ क्यों ?’’
*’’ मां, मैने यह घर बेच दिया है और बदले में भूल्लन हमें शहर में एक फ्लैट दे रहा है। बिल्कुल मुफ्त, मां , गांव की गंदगी से निकलने का समय आ गया है।’’
मां रोई-चिल्लाई लेकिन बेचू ने एक न सुनी।
*शहर में आने के बाद, पहले अंडे आने बंद हुये, फिर तालाब सूख गया। दूध देने से भूल्लन ने साफ मना कर दिया।*
और , एक दिन वह भी आया जब भूल्लन भाग गया। बेचू झोला उठाकर चला गया। 
*मां आज भी बैठी रो रही है*
   *समझ में आए तो*
         *निजीकरण से देश बचाओ।
    जय हिन्द,
       जय भारत।
    

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